अगर आप किसी भी परीक्षा कि तैयारी कर रहें हो तों आपको Hindi grammar में स्वर ( Swar ) जरूर सीखना चाहिए क्योंकि इससे संबंधित परीक्षाओ में प्रश्न पूछे जाते हैं।
हिंदी व्याकरण में हम वर्ण विचार का अध्ययन करते हैं जिसमें वर्ण के दो भेद हैं – 1. स्वर ( Swar ) और 2. व्यंजन ( Vyanjan ) आज के इस लेख में हम स्वर वर्ण को विस्तार से सीखेंगे इसलिए इसे पूरा पढ़े

Swar in Hindi – स्वर का अर्थ एवं परिभाषा
Vowels in Hindi
स्वर की परिभाषा – वे ध्वनियां जिनके उच्चारण में किसी अन्य ध्वनियों कि सहायता नहीं लेनी पड़ती और हवा हमारे मुँह से बिना किसी रूकावट के निकलती हैं, उसे स्वर कहते हैं।
सामान्य शब्दों में – वे सभी वर्ण जो स्वतंत्र रूप से बोले जाते हैं या उच्चारण किया जाता हैं, उसे स्वर कहते हैं।
अन्य शब्दों में – वे वर्ण जिनके उच्चारण में किसी अन्य वर्णो की सहायता की जरूरत नहीं होती, स्वर कहलाता है।
हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर है –
Swar | Matra |
---|---|
अ | |
आ | ा |
इ | ि |
ई | ी |
उ | ु |
ऊ | ू |
ऋ | ृ |
ए | े |
ऐ | ैै |
ओ | ो |
औ | ौ |
नोट- हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnmala) में मात्रा के आधार पर स्वरों की संख्या 10 है।
Swar ke Bhed – स्वरों का वर्गीकरण
स्वरों को 6 भागो में वर्गीकृत किया गया हैं –
- उच्चारण काल के आधार पर
- ह्स्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- समानाक्षर स्वर
- सन्ध्यसर स्वर
- प्लुत स्वर
- उत्पत्ति के आधार पर
- मूल स्वर
- सन्धि ( दीर्घ / गुरु ) स्वर
- मूल दीर्घ स्वर
- सयुंक्त स्वर
- जीभ के प्रयोग के आधार पर
- अग्र स्वर
- मध्य स्वर
- पश्च स्वर
- ऑष्ठ ( ओठों ) कि स्तिथि के आधार पर
- आवृत्तमुखी स्वर
- वृत्तमुखी स्वर
- तालु की स्थिति के आधार पर
- संवृत स्वर
- विवृत स्वर
- अर्ध संवृत स्वर
- अर्ध विवृत स्वर
- उच्चारण अथवा अनुनासिकता के आधार पर
- अनुनासिक स्वर
- निरनुनासिक स्वर
उच्चारण काल के आधार पर
प्रत्येक स्वर के उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वरों के तीन प्रकार होते हैं, अर्थात उच्चारणकाल के आधार पर स्वर के तीन भेद होते हैं, ह्स्व स्वर, दीर्घ स्वर और प्लुत स्वर
ह्स्व स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता हैं उन्हें ह्स्व स्वर कहते हैं।
अन्य शब्दों में – जिन स्वरों के उच्चारण अन्य स्वरों की तुलना में कम समय लगता है उन्हें ह्स्व स्वर कहते है।
ह्स्व स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगने के कारण इसे एक मात्रिक स्वर भी कहा जाता है।
इन स्वरों की संख्या चार होती है – अ, इ, उ, ऋ
ह्स्व स्वर को मूल स्वर और लघु स्वर के नाम से भी जाना जाता है।
दीर्घ स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता हैं उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
अन्य शब्दों में – वे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दोगुना समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
दीर्घ स्वरों के उच्चारण में ह्स्व स्वरों कि तुलना में दोगुना समय लगता है।
दीर्घ स्वरों के उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगने के कारण इन्हें द्विमात्रिक स्वर भी कहा जाता है।
दीर्घ स्वर सात होते है – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
दीर्घ स्वर दो शब्दों के योग से बनते है, इसलिए इन्हे सयुंक्त स्वर भी कहता हैं, जैसे –
आ =(अ +अ )
ई =(इ +इ )
ऊ =(उ +उ )
ए =(अ +इ )
ऐ =(अ +ए )
ओ =(अ +उ )
औ =(अ +ओ )
दो स्वरों के योग के आधार पर दीर्घ स्वरों को दो भागों में बांटा जा सकता है – समानाक्षर स्वर और सन्ध्यसर स्वर
समानाक्षर स्वर
दो समान स्वरों के योग से बनने वाले दीर्घ स्वरों को समानाक्षर स्वर कहते हैं, जैसे –
- आ = अ + अ
- ई = इ + इ
- ऊ = उ + उ
सन्ध्यसर स्वर
दो असमान स्वरों के योग से बनने वाले दीर्घ स्वरों को सन्ध्यसर स्वर कहते हैं, जैसे –
- ए = अ + इ
- ऐ = अ + ए
- ओ = अ + उ
- औ = अ + ओ
प्लुत स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय यानी तीन मात्राओं का समय लगता है, प्लुत स्वर कहलाते हैं।
सरल शब्दों में- जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे प्लुत कहते हैं।
इसका चिह्न (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता है। जैसे- सुनोऽऽ, शाऽऽम, पोऽऽम्।
हिन्दी में साधारणतः प्लुत का प्रयोग नहीं होता। वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है। इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं।
अं, अः अयोगवाह कहलाते हैं। वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले होता है। अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है।
उत्पत्ति के आधार पर
उत्पत्ति के आधार पर स्वर दो प्रकार के होते हैं – मूल स्वर और सन्धि ( दीर्घ / गुरु ) स्वर
मूल स्वर
वे स्वर जिनका निर्माण किसी अन्य स्वर से नहीं होता उन स्वरों को मूल स्वर कहते हैं। ( Note – इन स्वरों को ऊपर वाला हीं जाने ये कब बने )
मूल स्वर चार होते हैं – अ, इ, उ, ऋ
सन्धि ( दीर्घ / गुरु ) स्वर
जो स्वर मूल स्वर के आपस में जुड़ने से बनते हैं अथवा दो स्वरों के योग से बनते हैं, उन्हें सन्धि स्वर या दीर्घ स्वर या गुरु स्वर कहते हैं।
जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
सन्धि स्वर दो प्रकार के होते हैं – मूल दीर्घ स्वर या सयुंक्त स्वर
जीभ के प्रयोग के आधार पर
किसी स्वर का उच्चारण करते समय इंसान के मुँह का सबसे अधिक क्रियाशील अंग जीभ होती है।
जीभ के अग्र भाग, मध्य भाग और पश्च भाग की क्रियाशीलता के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण किया गया है।
मानव जीभ की क्रियाशीलता के आधार पर स्वर तीन प्रकार के होते हैं – अग्र स्वर, मध्य स्वर और पश्च स्वर
अग्र स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मानव जीभ का अग्र भाग क्रियाशील हो उन्हें अग्र स्वर कहते हैं।
अग्र स्वरों का उच्चारण करते समय जीभ के आगे वाले भाग में कम्पन होता है, जिसके कारण इन स्वरों को अग्र स्वर कहते हैं।
अग्र स्वरों की संख्या पाँच होती है – इ, ई, ए, ऐ, ऋ
मध्य स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय इंसान के जीभ का मध्य भाग क्रियाशील हो उन्हें मध्य स्वर कहते हैं।
मध्य स्वरों का उच्चारण करते समय जीभ के मध्य भाग में कम्पन होती है, इसलिए इन स्वरों को मध्य स्वर कहते हैं।
मध्य स्वर की संख्या एक होती है – अ
पश्च स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मानव के जीभ का पश्च यानि पिछला भाग क्रियाशील हो उन्हें पश्च स्वर कहते हैं।
पश्च स्वरों का उच्चारण करते समय जीभ के पिछले भाग में कम्पन होती है, इसलिए इन स्वरों को पश्च स्वर कहते हैं।
पश्च स्वरों की संख्या पाँच होती है – आ, उ, ऊ, ओ, औ
ऑष्ठ ( ओठों ) कि स्तिथि के आधार पर
हिंदी के सभी स्वरों का उच्चारण करते समय हमारे होंठों (ओष्ठों) की एक विशेष आकृति बनती है, जिसके आधार पर स्वरों का वर्गीकरण किया गया है।
ऑष्ठ ( ओठों ) कि स्तिथि के आधार पर स्वर दो प्रकार के होते हैं, आवृत्तमुखी स्वर और वृत्तमुखी स्वर
आवृत्तमुखी स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में ऑष्ठ ( ओठों ) वृत्तमुखी या गोलकार नहीं होते हैं, उन्हें आवृत्तमुखी स्वर कहते हैं।
जैसे – अ, आ, इ, ई, ऋ, ए, ऐ
वृत्तमुखी स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में ऑष्ठ ( ओठों ) वृत्तमुखी या गोलकार होते हैं, उन्हें आवृत्तमुखी स्वर कहते हैं।
साधरण शब्दों में – आवृत्तमुखी स्वर के विपरीत वृत्तमुखी स्वर के उच्चारण में ऑष्ठ ( ओठों ) कि स्तिथि वृत्तमुखी या गोलकार हो जाती हैं।
जैसे – उ, ऊ, ओ, औ
तालु की स्थिति के आधार पर
हिंदी के कुछ स्वरों का उच्चारण करते समय इंसान कि जीभ तालु के बहुत नजदीक या दूर होती है, जिससे इंसान का मुँह या तो कम खुलता हैं या फिर ज़्यादा खुलता है।
तालु अथवा मुखाकृति के आधार पर स्वर चार प्रकार के होते हैं।
- संवृत स्वर
- विवृत स्वर
- अर्ध संवृत स्वर
- अर्ध विवृत स्वर
संवृत स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय जीभ का अग्र भाग तालु के अग्र भाग को लगभग स्पर्श करता हुआ प्रतीत होता हो उन्हें संवृत स्वर कहते हैं।
संवृत स्वरों का उच्चारण करते समय इंसान कि जीभ का अग्र भाग तालु के अग्र भाग को लगभग छूता हुआ प्रतीत होता है, जिससे मुख लगभग बंद की स्थिति में होता है अर्थात संवृत स्वरों का उच्चारण करते समय अन्य स्वरों की तुलना में मुख कम खुलता है।
संवृत स्वरों की संख्या चार होती है – इ, ई, उ, ऊ
विवृत स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय जीभ का पश्च भाग तालु के पश्च भाग को लगभग स्पर्श करता हुआ प्रतीत होता हो उन्हें विवृत स्वर कहते हैं।
विवृत स्वरों का उच्चारण करते समय इंसान कि जीभ का पश्च भाग तालु के पश्च भाग को लगभग छूता हुआ प्रतीत होता है, जिससे मुख अधिक खुलता है, अर्थात विवृत स्वरों का उच्चारण करते समय अन्य स्वरों की तुलना में मुख अधिक खुलता है।
विवृत स्वरों की संख्या एक होती है – आ
अर्द्ध विवृत स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुँह विवृत स्वरों से थोड़ा कम खुलता हो उन्हें अर्द्ध विवृत स्वर कहते हैं।
अर्द्ध विवृत स्वरों की संख्या तीन होती है – अ, ऐ, औ
अर्द्ध संवृत स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुँह संवृत स्वरों से थोड़ा ज़्यादा खुलता हो उन्हें अर्द्ध संवृत स्वर कहते हैं।
अर्द्ध संवृत स्वरों की संख्या दो होती है – ए और ओ
उच्चारण अथवा अनुनासिकता के आधार
उच्चारण अथवा अनुनासिकता के आधार पर स्वरों के दो भेद होते हैं।
- अनुनासिक स्वर
- निरनुनासिक स्वर
अनुनासिक स्वर
वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय वायु मुँह के साथ-साथ नाक से भी बाहर निकले तो उसे अनुनासिक स्वर कहते हैं।
किसी भी स्वर के ऊपर चंद्रबिंदु का प्रयोग कर देने पर वह स्वर अनुनासिक स्वर कहलाता है।
अनुनासिक स्वर को सानुनासिक स्वर भी कहते हैं।
जैसे:-
अँ, आँ, इँ आदि।
निरनुनासिक स्वर
निरनुनासिक शब्द निर् + अनुनासिक से बना है, जिसका अर्थ अनुनासिक रहित होता है।
जिन स्वरों का उच्चारण करते समय वायु सिर्फ़ मुँह से बाहर निकलती हो उन्हें निरनुनासिक स्वर कहते हैं।
जब किसी स्वर के ऊपर चंद्रबिंदु का प्रयोग नहीं किया गया हो तो वह निरनुनासिक स्वर कहलाता है।
जैसे
अ, आ, इ आदि।
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Final Words as Conclusion – निष्कर्ष
हिंदी व्याकरण को सीखने के लिए उसे आसान बनाने के उद्देश्य से वर्गीकृत किया गया हैं जिसमे वर्ण विचार का अध्ययन किया जाता हैं, वर्ण के दो भेद हैं स्वर और व्यंजन जिसमें आज हमने Hindi Swar के बारे में विस्तार से पढ़ा अब हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इसको शुरू से अच्छे से पढ़े और इसका अभ्यास करते रहें और Hindi grammar सिखने के लिए इसके सभी टॉपिक्स को स्टेप बाई स्टेप पढ़ते रहें।
FAQ – Hindi Swar
हिंदी में स्वर ग्यारह ( 11 ) होते हैं-
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
वे वर्ण जो स्वतंत्र रूप से बोले जाते हैं, उन्हें स्वर कहते हैं।
हिंदी के 52 अक्षर –
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र, ड़, ढ़, (ँ) और (:) है।
मात्रा स्वर का ही एक रूप होता है। जो स्वर का ही प्रतिनिधित्व करता है मात्राओं की संख्या दस होती है।
वर्ण का दूसरा नाम ध्वनि है।
हलन्त जब किसी व्यन्जन वर्ण के नीचे लगाया जाता है तो वह व्यन्जन वर्ण स्वररहित हो जाता है अर्थात जिस व्यन्जन के बाद यह चिह्न लगा होता है उस व्यन्जन में छिपा हुआ ‘अ’ समाप्त हो जाता है। इस तरह उस व्यन्जन वर्ण का प्रयोग शुद्ध रूप में होता है। हलन्त किसी वर्ण के आधे होने का एक सूचक चिह्न है।
swar 11 hote hain
Vah Varn jo Swatantra roop se bole jate hain unhe Swar kahate hain
स्वर के मुख्यतः तीन भेद होते हैं –
1. हृस्व स्वर (एक मात्रिक) ,
2. दीर्घ स्वर (द्विमात्रिक) और
3. प्लुत स्वर (त्रिमात्रिक).
हिंदी में मूल स्वरों की संख्या चार होती है – अ, इ, उ, ऋ
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