भाषा एक महत्वपूर्ण साधना है जिससे हम अपने भावों, विचारों, और विचारों को दूसरों के साथ साझा करते हैं। हमारे विचारों को लिखित रूप में प्रस्तुत करने का माध्यम ‘लिपि’ है। लिपि एक भाषा को अक्षरों या संकेतों में बदलने की प्रक्रिया है जो हमें विचारों को साझा करने की सहायता करती है। इसलिए, लिपि हमारे समाज और संस्कृति के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस लेख में, हम देखेंगे कि Lipi Kise Kahate Hain और इसके प्रकार क्या हैं।
Lipi kise kahate Hain
लिपि (Lipi) शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब ‘लेखनी’ या ‘वर्णनी’ होता है। लिपि वह भाषा-साधना है जिसके माध्यम से हम अपने विचारों और भावों को वस्त्रों में बांधकर उन्हें दूसरों के सामने प्रस्तुत करते हैं। विश्व भर में अनेक प्रकार की लिपियों का विकास हुआ है, जो भाषाओं और समाजों के साथ-साथ उनके संस्कृति को भी प्रतिबिंबित करती हैं।
उदाहरण: देवनागरी लिपि (Lipi) हिन्दी एवं संस्कृत में प्रयुक्त लिपि का नाम है। अंग्रेजी भाषा की लिपि को रोमन और उर्दू भाषा की लिपि को फ़ारसी कहा जाता है।
कुछ भाषाएं और उनकी लिपियां:
हिंदी – देवनागरी
अंग्रेज़ी – रोमन
उर्दूअरबी – फ़ारसी
पंजाबी – गुरुमुखी
गुजराती – गुजराती लीपि
लिपि के प्रकार
लिपि (Lipi) के विभिन्न प्रकार होते हैं जो भिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के अनुरूप होते हैं। यहां कुछ प्रमुख लिपियों का उल्लेख किया गया है:
- देवनागरी लिपि: देवनागरी लिपि हिंदी, संस्कृत, नेपाली, मराठी, भोजपुरी, राजस्थानी, गुजराती और कई अन्य भाषाओं के लिए प्रयुक्त होती है।
- लैटिन लिपि: लैटिन लिपि अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, जर्मन, इतालवी, और कई और भाषाओं के लिए उपयुक्त है।
- उत्तरनागरी लिपि: उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं प्रदेशों में उपयोग की जाने वाली लिपि है।
- बंगली लिपि: बंगाल, त्रिपुरा, और असम की भाषा बंगली के लिए उपयुक्त है।
- सिन्धी लिपि: सिन्धी भाषा के लिए उपयोगी लिपि है जो अरबी लिपि से निकली है।
- गुजराती लिपि: गुजराती लिपि नागरी लिपि पर आधारित है। 1797 में पहली बार गुजराती लिपि छपी थी। इस स्क्रिप्ट में शिरोरेखा शामिल नहीं है. गुजराती भाषा को लिखने के लिए गुजराती लिपि का उपयोग किया जाता है।
- गुरुमुखी लिपि: गुरुमुखी का अर्थ है “गुरु के मुख से निकली हुई।” गुरु अंगद देव ने इसकी स्थापना की। गुरुमुखी में 35 अक्षर, 3 स्वर और 32 व्यंजन हैं। पंजाबी गुरुमुखी लिपि में लिखी जाती है।
भारत में लिपि का इतिहास
भारत में लिपि (Lipi) का इतिहास बहुत पुराना है। भारत को लंबे समय से लिपि कला में विश्व विशेषज्ञ माना जाता रहा है।
भारतीय पारंपरिक मान्यता के अनुसार, लेखन की रचना स्वयं ब्रह्मा ने की थी। भारत के सबसे प्रसिद्ध भाषाविद् के अलावा और किसने ब्राह्मण लिपि का निर्माण किया?
भोलानाथ तिवारी कहते हैं, ”मनुष्य ने अपनी आवश्यकता के अनुसार लिपि को जन्म दिया है।” आरंभ में मनुष्य ने जो कुछ भी किया, उसका उद्देश्य लिपि का विकास करना नहीं था।
बल्कि, कुछ रेखाएँ जादू के लिए, किसी देवता या अन्य प्रतीक की छवि के रूप में, सुंदरता के लिए, गुफाओं की दीवारों पर जानवरों और पौधों के चित्र या याद रखने के लिए रस्सियों में गांठें इत्यादि के लिए बनाई गई होंगी।
इन विधियों को बाद में नियोजित किया गया। विचारों की अभिव्यक्ति और अंततः नीति के लिए। पटकथा पर दो दृष्टिकोण हैं:
पहला दृष्टिकोण भारतीय विद्वानों का है, जो मानते हैं कि भारतीय अक्षरों का विकास भारत में हुआ। दूसरा दृष्टिकोण यूरोपीय शिक्षाविदों का है।
जो लोग दावा करते हैं कि भारतीय लिपियाँ बेबीलोन, मिस्र और यूरोप के अन्य हिस्सों में पाई गई लिपियों से विकसित हुईं।
हालाँकि, प्राचीन भारतीय लेखन श्रृंखला में, गौरी शंकर और हीरा चंद्र ओझल ने भारत में लेखन ज्ञान की प्राचीनता को 2000 ईसा पूर्व स्थापित किया था। सेंधव लिपि का प्रयोग कई वर्ष पूर्व भारत में व्यापक रूप से किया जाता था। यह विश्व की सबसे प्राचीन ज्ञान लिपि भी है।
इस सन्दर्भ में अभिलेखों की लिपि (Lipi) को पश्चिमी विद्वानों के तर्क एवं मत का खंडन करते हुए साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसे तीन खंडों में विभाजित किया गया है:
- वैदिक ग्रंथों के प्रमाण: ऋग्वेद में कई खगोलीय ऋचाएँ हैं जो बताती हैं कि संख्याओं का निर्माण कैसे हुआ।
- संस्कृत ग्रंथों के प्रमाण: वाल्मिकी रामायण में हनुमान और सीता के बीच हुए प्रवचन में लिपि और भाषा के संकेत हैं। पाणिनि के ‘अष्टाध्याय’ में लिपि और लिपिक जैसी शब्दावली के प्रमाण मिलते हैं।
- बौद्ध और जैन ग्रंथों के साक्ष्य: ‘समन्वयनसूत्र’ और ‘पनवनसूत्र’ में प्रारंभिक नाम ब्राह्मी के साथ 18 लिपियों को दर्शाया गया है। बौद्ध ग्रंथ ‘ललितविस्तार’ सूत्र में 64 भारतीय लिपियों का भी उल्लेख है।
भारत की 22 भाषाएं और उनकी लिपि
भाषा का नाम | लिपि का नाम |
हिंदी | देवनागिरी |
सिंधी | देवनागिरी/फ़ारसी |
पंजाबी | गुरुमुखी |
कश्मीरी | फ़ारसी |
गुजराती | गुजराती |
मराठी | देवनागिरी |
उड़िया | उड़िया |
बांग्ला | बांग्ला |
असमिया | असमिया |
उर्दू | फ़ारसी |
तमिल | ब्राह्मी |
तेलुगु | ब्राह्मी |
मलयालम | ब्राह्मी |
कन्नड़ | कन्नड़/ब्राह्मी |
कोकड़ी | देवनागिरी |
संस्कृत | देवनागिरी |
नेपाली | देवनागिरी |
संथाली | देवनागिरी |
डोंगरी | देवनागिरी |
मणिपुरी | मणिपुरी |
वोडों | देवनागिरी |
मैथिली | देवनागिरी/मैथिली |
निष्कर्ष
लिपि (Lipi) एक महत्वपूर्ण साधना है जो भाषा को विचारों के रूप में प्रस्तुत करने का माध्यम प्रदान करती है। विभिन्न लिपियों के माध्यम से हम भाषाओं के विविधता और समृद्धि का अनुभव करते हैं और अन्य समाजों और संस्कृतियों को समझने में सहायता प्रदान करते हैं। इसलिए, लिपि हमारे समाज के संवाद में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और हमारे सभी संस्कृतियों को समृद्धि से भरती है।
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