kriya kise kehte hain
kriya वह शब्द या शब्दों का समूह है, जो किसी व्यक्ति या वस्तु के सम्बंद में कुछ बताये या उनके द्वारा किये गए किसी कार्य को प्रकट करते है।
kriya
kriya kise kahate hain
- राधा नाच रही है ।
- बच्चा दूध पी रहा है ।
- मुकेश कॉलेज जा रहा है ।
क्रिया के भेद – (kriya ke bhed)
- अकर्मक क्रिया(akarmak kriya)
- अपूर्ण क्रिया
अकर्मक क्रिया
जिन (kriya) क्रियाओं का फल सीधा कर्ता पर ही पड़े वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं । ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं होती ।
अकर्मक क्रियाओं के उदाहरण-
- गौरव रोता है ।
- साँप रेंगता है ।
- रेलगाड़ी चलती है ।
कुछ अकर्मक क्रियाएँ-
लजाना | डोलना |
होना | चमकना |
बढ़ना | ठहरना |
सोना | कूदना |
खेलना | उछलना |
अकड़ना | बरसना |
डरना | जागना |
बैठना | फाँदना |
हँसना | घटना |
उगना | मरना |
जीना | रोना |
प्रयोग की दृष्टि से – kriya ke bhed
1. सामान्य क्रिया-
जहाँ केवल एक क्रिया का प्रयोग होता है वह सामान्य क्रिया कहलाती है ।
जैसे- आप आए । वह नहाया ।
2. संयुक्त क्रिया-
जहाँ दो अथवा अधिक क्रियाओं का साथ-साथ प्रयोग हो वे संयुक्त क्रिया कहलाती हैं।
जैसे- सविता महाभारत पढ़ने लगी । वह खा चुका ।
3. नामधातु क्रिया-
संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों से बने क्रियापद नामधातु क्रिया कहलाते हैं ।
जैसे- हथियाना, शरमाना, अपनाना, लजाना, चिकनाना, झुठलाना इत्यादि ।
4. प्रेरणार्थक क्रिया-
जिस क्रिया से पता चले कि कर्ता स्वयं कार्य को न करके किसी अन्य को उस कार्य को करने की प्रेरणा देता है वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। ऐसी क्रियाओं के दो कर्ता होते हैं-
- प्रेरक कर्ता- प्रेरणा प्रदान करने वाला
- प्रेरित कर्ता- प्रेरणा लेने वाला।
जैसे- मोहन राधा से पत्र लिखवाता है ।
5. पूर्वकालिक क्रिया-
किसी क्रिया से पहले यदि कोई दूसरी क्रिया प्रयुक्त हो तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है ।
जैसे- मैं अभी खाकर उठा हूँ । इसमें ‘उठा हूँ’ क्रिया से पूर्व ‘खाकर’ क्रिया का प्रयोग हुआ है । अतः ‘खाकर’ पूर्वकालिक क्रिया है ।
पूर्वकालिक क्रिया या तो क्रिया के सामान्य रूप में प्रयुक्त होती है अथवा धातु के अंत में‘कर’ या‘करके’ लगा देने से पूर्वकालिक क्रिया बन जाती है ।
जैसे-
- बच्चा दूध पीते ही सो गया ।
- लड़कियाँ पुस्तकें पढ़कर जाएँगी ।
अपूर्ण क्रिया
भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे । वह बुद्धिमान है ।
अपूर्ण क्रिया के अर्थ को पूरा करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन्हें पूरक कहते है।
धातु (dhatu)
धातु के रूप – (dhatu roop)
- सामान्य धातु
- व्युत्पन्न धातु
- नाम धातु
- सम्मिश्र धातु
(i) सामान्य धातु
मूल में ना प्रत्यय लगाकर बनने वाला रूप सरल धातु या सामान्य धातु कहलाता है । जैसे- सोना, रोना, पढ़ना, बैठना इत्यादि ।
(ii) व्युत्पन्न धातु
सामान्य धातुओं में प्रत्यय लगाकर या अन्य किसी प्रकार से परिवर्तन कर जो धातुएं बनाई जाती हैं उन्हें व्युत्पन्न धातु कहते हैं ।
सामान्य धातु | व्युत्पन्न धातु |
पढ़ना | पढ़ाना, पढ़वाना |
काट | काटना, कटवाना |
देना | दिलाना, दिलवाना |
करना | कराना, करवाना |
सोना | सुलाना, सुलवाना |
(iii) नामधातु
संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण में प्रत्यय लगाकर जो धातुएं बनती हैं, उन्हें नामधातु कहा जाता है । जैसे-
संज्ञा से-
बात | बतियाना |
हाथ | हथियाना |
फ़िल्म | फ़िल्माना |
सर्वनाम से-
आप | अपनाना |
विशेषण से-
चिकना | चिकनाना |
लँगड़ा | लँगड़ाना |
साठ | सठियाना |
(iv) सम्मिश्र धातु
संज्ञा, विशेषण या क्रियाविशेषण के साथ जब करना, होना, देना जैसे क्रियापद जुड़ जाते हैं तो उसे सम्मिश्र धातु कहा जाता है ।
जैसे-
संज्ञा से-
स्मरण | स्मरण करना |
क्रिया विशेषण से-
भीतर |
भीतर जाना |