अगर आप भी Hindi Vyanjan सीखना चाहते हो तो आप सही लेख पढ़ रहें हो क्योंकि हमने इसे विस्तार से सिखाने कि कोशिश कि हैं।
हिंदी व्याकरण भाषा को शुद्ध रूप प्रदान करने का एक शास्त्र हैं जिसमें हम वर्ण विचार का अध्ययन करते हैं, वर्ण के दो भेद होते हैं जिसमें हम स्वर वर्ण पिछले अध्याय में पढ़ चुके हैं आज हम व्यंजन के बारे में विस्तार से सरल भाषा में अध्ययन करेंगे In sha Allaah जैसे व्यंजन किसे कहते हैं, व्यंजन के प्रकार एवं भेद, व्यंजन के उदाहरण आदि।
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Hindi Vyanjan – अर्थ एवं परिभाषा
Vyanjan kise kahate Hain
वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतन्त्र न होकर स्वरों कि सहायता से किया जाता हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
साधारण शब्दों में – वे वर्ण जो स्वरों कि सहायता से बोले जाते हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
दूसरे शब्दों में – सभी आश्रित वर्णो को व्यंजन कहते हैं।
जैसे- क, ख, ग, च, छ, त, थ, द, भ, म इत्यादि।
‘क’ से विसर्ग ( : ) तक सभी वर्ण व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ‘अ’ की ध्वनि छिपी रहती है। ‘अ’ के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं।
जैसे- ख्+अ=ख, प्+अ =प
व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में, बाधित होती है, स्वरवर्ण स्वतंत्र और व्यंजनवर्ण स्वर पर आश्रित है।
परम्परागत रूप से हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या 33 है, जबकि हिंदी में व्यंजनों कि कुल संख्या 39 हैं, जिसमे 25 स्पर्श व्यंजन, 4 अन्तःस्थ व्यंजन, 4 उष्म व्यंजन, 4 सयुंक्त व्यंजन तथा 2 अन्य व्यंजन शामिल हैं।
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Vyanjan ke Bhed – व्यंजनों के भेद
व्यंजनों के प्रमुख तीन प्रकार के होते है –
- स्पर्श व्यंजन
- अन्तःस्थ व्यंजन
- उष्म व्यंजन
(1) Sparsh vyanjan – स्पर्श व्यंजन
Sparsh vyanjan kitne hote Hain
वे व्यंजन जिनका का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे- कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होठ को स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।
साधारण शब्दो में – ये कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं, इसलिए इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
इन्हें हम ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहते है; क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त हैं।
ये 25 व्यंजन होते है –
1 | क वर्ग | क ख ग घ ङ | ये कण्ठ को स्पर्श करते है। |
2 | च वर्ग | च छ ज झ ञ | ये तालु का स्पर्श करते है। |
3 | ट वर्ग | ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) | ये मूर्धा का स्पर्श करते है। |
4 | त वर्ग | त थ द ध न | ये दाँतो का स्पर्श करते है। |
5 | प वर्ग | प फ ब भ म | ये होठों का स्पर्श करते है। |

(2) अन्तःस्थ व्यंजन
‘अन्तः’ का अर्थ होता है- ‘भीतर’।
वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है।
अन्तः = मध्य/बीच, स्थ = स्थित।
इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का-सा होता है। उच्चारण के समय जीभ मुख के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती।
ये व्यंजन चार होते है, जैसे – य, र, ल, व।
इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन ‘अर्द्धस्वर’ कहलाते हैं।
(3) Ushm Vyanjan – उष्म व्यंजन
Hindi varnmala mein kitne ushm vyanjan hai
उष्म का अर्थ होता है गर्म, ऊष्म = गर्म।
वे वर्ण जिनका उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।
इन व्यंजनों के उच्चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है यानी उच्चारण के समय मुख से गर्म हवा निकलती है।
उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पत्र उष्म वायु से होता हैं।
ये भी चार व्यंजन होते है, जैसे – श, ष, स, ह।
☛ स्वर किसे कहते हैं? | परिभाषा एवं वर्गीकरण | Swar in Hindi | Hindi Varnamala→
व्यंजनों का वर्गीकरण
व्यंजनों का वर्गीकरण चार आधार पर किया जाता है –
- उच्चारण स्थान के आधार पर
- कण्ठ्य व्यंजन
- तालव्य व्यंजन
- मूर्धन्य व्यंजन
- दंत्य व्यंजन
- वर्त्सय व्यंजन
- ओष्ठय व्यंजन
- दंतौष्ठय व्यंजन
- स्वर व्यंजन
- श्वास (प्राण-वायु) की मात्रा के आधार पर
- अल्पप्राण
- महाप्राण
- स्वर तंत्रियों के आधार पर
- अघोष व्यंजन
- सघोष या घोष व्यंजन
- प्रयत्न विधि के आधार पर
- स्पर्शी या स्पृष्ट
- स्पर्श-संघर्षी व्यंजन
- उत्क्षिप्त व्यंजन
- लुंठित व्यंजन
- अंत:स्थ व्यंजन
- पार्श्विक व्यंजन
- संयुक्त व्यंजन
उच्चारण स्थान के आधार पर
व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुख के अलग-अलग भागों से टकराती है। उच्चारण के अंगों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
1 | कंठ्य व्यंजन | गले से | क, ख, ग, घ, ङ |
2 | तालव्य व्यंजन | कठोर तालु से | च, छ, ज, झ, ञ, य, श |
3 | मूर्धन्य व्यंजन | कठोर तालु के अगले भाग से | ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ष |
4 | दंत्य व्यंजन | दाँतों से | त, थ, द, ध, न |
5 | वर्त्सय व्यंजन | दाँतों के मूल से | स, ज, र, ल |
6 | ओष्ठय व्यंजन | दोनों होंठों से | प, फ, ब, भ, म |
7 | दंतौष्ठय व्यंजन | निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से | व, फ |
8 | स्वर व्यंजन | यंत्र से | ह |
श्वास (प्राण-वायु) की मात्रा के आधार पर
उच्चारण में वायुप्रक्षेप की दृष्टि से व्यंजनों के दो भेद हैं –
अल्पप्राण व्यंजन
Alppran vyanjan kaun sa hai
वे व्यंजन जिनके उच्चारण में श्वास पुरव से अल्प मात्रा में निकले और जिनमें ‘हकार’-जैसी ध्वनि नहीं होती, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं।
सरल शब्दों में – वे वर्ण जिनके उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है, वे अल्पप्राण कहलाते हैं।
प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं।
जैसे- क, ग, ङ; ज, ञ; ट, ड, ण; त, द, न; प, ब, म,।
अन्तःस्थ (य, र, ल, व ) भी अल्पप्राण ही हैं।
Mahapran Vyanjan – महाप्राण व्यंजन
वे वर्ण जिनके उच्चारण में ‘हकार’-जैसी ध्वनि विशेष रूप से रहती है और श्वास अधिक मात्रा में निकलती हैं, उन्हें महाप्राण कहते हैं।
सरल शब्दों में – जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा अधिक होती है, वे महाप्राण कहलाते हैं।
प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।
जैसे- ख, घ; छ, झ; ठ, ढ; थ, ध; फ, भ और श, ष, स, ह।
संक्षेप में अल्पप्राण वर्णों की अपेक्षा महाप्राणों में प्राणवायु का उपयोग अधिक श्रमपूर्वक करना पड़ता हैं।
स्वर तंत्रियों के आधार पर
कुछ वर्णों का उच्चारण करते समय जब हवा हमारे गले से बाहर निकलती है तो हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन होता है, जबकि कुछ वर्ण ऐसे भी हैं जिनको उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में किसी भी प्रकार का कोई कंपन नहीं होता है।
अतः इसी कंपन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण किया गया है।
स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर इन वर्णों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है –
अघोष व्यंजन
अघोष शब्द “अ” और “घोष” के योग से बना है। अ का अर्थ नहीं और घोष का अर्थ कंपन होता है।
जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वर तंत्रीयों में कंपन नहीं होता हैं, उन वर्णों को अघोष वर्ण कहते हैं।
प्रत्येक व्यंजन वर्ग का पहला एवं दूसरा वर्ण तथा श, ष, स अघोष व्यंजन होता है. हिंदी में क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, तथा उष्म व्यंजन श, ष, स वर्णों को अघोष व्यंजन कहते हैं।
सघोष या घोष व्यंजन
जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वर तंत्रीयों में कंपन होता हैं, उन वर्णों को सघोष वर्ण कहते हैं।
प्रत्येक व्यंजन वर्ग का तीसरा, चौथा और पांचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह सघोष व्यंजन होता हैं।
हिंदी में ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ड़, ढ, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह वर्णों को सघोष व्यंजन कहते हैं।
सभी स्वर सघोष व्यंजन होते हैं।
प्रयत्न विधि के आधार पर
प्रयत्न विधि के आधार पर व्यंजनों को 7 भागो में वर्गीकृत किया गया हैं जिसमें हम 2 का अध्ययन कर चुके हैं बाकि 5 का अध्ययन नीचे करेंगे –
नासिक्य व्यंजन
वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु हमारी नाक से होकर गुज़रती है, उन्हें नासिक्य व्यंजन कहते हैं।
हिंदी वर्णमाला में ङ, ञ, ण, न, म नासिक्य व्यंजन कहलाते हैं।
उत्क्षिप्त व्यंजन
ड़ एवं ढ़ – उत्क्षिप्त व्यंजन है, इन वर्णों को द्विस्पृष्ठ या ताड़नजात व्यंजन भी कहते हैं।
वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय हमारी जीभ हमारे तालु को छुते हुए एक झटके के साथ नीचे की तरफ़ आती है, जिससे हवा बाहर निकलती है और इन वर्णों का उच्चारण होता है, तो इन्हे उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं।
लुंठित व्यंजन
र को लुंठित व्यंजन कहा जाता है क्योंकि “र” का उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु जीभ से टकरा कर लुढ़कती हुई बाहर निकलती है।
आसान भाषा में कहें तो जब हम “र” का उच्चारण करते हैं तो हमारी जीभ में कंपन होता है, इसलिए “र” को प्रकंपित व्यंजन भी कहते हैं।
पार्श्विक व्यंजन
ल पार्श्विक व्यंजन है। “ल” का उच्चारण करते समय हमारी सांस जीभ के बग़ल (पार्श्व) से गुज़रती है।
संयुक्त व्यंजन
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं, क्योंकि इन वर्णों को दो व्यंजनों के योग से बनाया गया है –
- क्ष = क् + ष
- त्र = त् + र
- ज्ञ = ग् + य
- श्र = श् + र
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Final Words As Conclusion – निष्कर्ष
Hindi को शुद्ध बोलना व लिखना Hindi व्याकरण से आता हैं, इसमें कई विषय शामिल हैं जिसमें वर्णो को शुरुआत में पढ़ा जाता हैं, इसके दो भेद होते है स्वर और व्यंजन स्वर को हम पिछले अध्याय में पढ़ चुके हैं, इसलिए आज हमने Hindi Vyanjan का विस्तार से अध्ययन किया जिसमें इसकी परिभाषा एवं इसे सरलता से समझने के लिए इसके वर्गीकरण का भी अध्ययन किया इसलिए उम्मीद करता हुँ आपको इस लेख में दी गयी जानकारी से सीखने को मिला इसलिए इसे ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंचाए ताकि वो भी अपनी परीक्षा कि तैयारी कर सके, शुक्रिया।
FAQ – Hindi Vyanjan
परम्परागत रूप से हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या 33 है, जबकि हिंदी में व्यंजनों कि कुल संख्या 39 हैं, जिसमे 25 स्पर्श व्यंजन, 4 अन्तःस्थ व्यंजन, 4 उष्म व्यंजन, 4 सयुंक्त व्यंजन तथा 2 अन्य व्यंजन शामिल हैं –
क वर्ग: क, ख, ग, घ, ङ
च वर्ग: च, छ, ज, झ, ञ
ट वर्ग: ट, ठ, ड, ढ, ण
त वर्ग: त, थ, द, ध, न
प वर्ग: प, फ, ब, भ, म
अंतःस्थ: य, र, ल, व
ऊष्म: श, ष, स, ह,
सयुंक्त: क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
उत्क्षिप्त: ड़, ढ़
परम्परागत रूप से हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या 33 है, जबकि हिंदी में व्यंजनों कि कुल संख्या 39 हैं, जिसमे 25 स्पर्श व्यंजन, 4 अन्तःस्थ व्यंजन, 4 उष्म व्यंजन, 4 सयुंक्त व्यंजन तथा 2 अन्य व्यंजन शामिल हैं।
हिंदी व्यंजन इस प्रकार हैं –
क वर्ग: क, ख, ग, घ, ङ
च वर्ग: च, छ, ज, झ, ञ
ट वर्ग: ट, ठ, ड, ढ, ण
त वर्ग: त, थ, द, ध, न
प वर्ग: प, फ, ब, भ, म
अंतःस्थ: य, र, ल, व
ऊष्म: श, ष, स, ह,
सयुंक्त: क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
उत्क्षिप्त: ड़, ढ़
अगर सयुंक्त व्यंजन को शामिल न किया जाए तो कुल 35 व्यंजन बचते हैं जो इस प्रकार हैं –
क वर्ग: क, ख, ग, घ, ङ
च वर्ग: च, छ, ज, झ, ञ
ट वर्ग: ट, ठ, ड, ढ, ण
त वर्ग: त, थ, द, ध, न
प वर्ग: प, फ, ब, भ, म
अंतःस्थ: य, र, ल, व
ऊष्म: श, ष, स, ह,
उत्क्षिप्त: ड़, ढ़
व्यंजन के प्रमुख 3 भेद होते हैं –
1. स्पर्श व्यंजन
2. अंतस्थ व्यंजन
3. उष्म व्यंजन
हिंदी के 52 अक्षर इस प्रकार हैं –
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ,
क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र, ड़, ढ़,
(ँ) और (:)
33 व्यंजन इस प्रकार हैं –
क वर्ग: क, ख, ग, घ, ङ
च वर्ग: च, छ, ज, झ, ञ
ट वर्ग: ट, ठ, ड, ढ, ण
त वर्ग: त, थ, द, ध, न
प वर्ग: प, फ, ब, भ, म
अंतःस्थ: य, र, ल, व
संयुक्त व्यंजन को स्वतंत्र वर्ण नहीं माना जाता है ,क्योंकि इनकी रचना दो व्यंजनों के मेल से है . जैसे जैसे – क् + श = क्ष , त् + र = त्र , ज् + ञ = ज्ञ , श् + र = श्र की रचना हुई है।
जिन वर्गों के उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
Hindi Grammar