किसी भी प्रकार की भाषा ( Bhasha ) को शुद्ध लिखने व बोलने के उसके कुछ नियम होते हैँ इसी प्रकार हिंदी भाषा को भी शुद्ध लिखने तथा बोलने के लिए हिंदी व्याकरण के रूप में नियम होते हैँ इसलिए इनका अध्ययन करना जरूरी होता हैँ।
हिंदी व्याकरण में कई मुख्य विषय आते हैँ उनमे से एक हैँ भाषा ( Bhasha ) जिसका इस लेख में हम विस्तार से अध्ययन करने वाले हैँ।
अगर आप Bhasha kise Kahate hain, भाषा के भेद क्या हैँ, lipi kya hain जैसे सवालों का जवाब चाहते हो तो इस लेख को पूरा पढ़े।

Bhasha kise Kahate hain – अर्थ व परिभाषा
भाषा का अर्थ – भाषा से आशय एक ऐसे साधन से है, जिसके माध्यम से व्यक्ति मौखिक व लिखित रूप से अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है।
दूसरे शब्दों में – हम अपने भावों एवं विचारों को लिखित अथवा मौखिक रूप जिस माध्यम से किसी अन्य को समझा सके और दूसरों के भावो एवं विचारों को समझ सके उसे हीं भाषा कहते है।
सरल शब्दों में – मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को भाषा कहते है।
इसके अतिरिक्त ज़ब हम किसी गूंगे बहरे को सांकेतिक रूप से समझाते हैँ तो यह बहुत मुश्किल सा लगता न हम उसे समझा पाते हैँ और न हीं हम उनके भावो को समझ पाते हैँ
इस असुविधा को दूर करने के लिए मुख से निकली ध्वनियों को मिलाकर शब्द बनाने आरंभ किए और शब्दों के मेल से बनी- भाषा।
Note – धार्मिक आधार पर देखा जाए तो इंसान को ऊपर वाले ने उसे सब कुछ सिखाया हैँ उसमे भाषा भी सम्मिलित हैँ।
भाषा के द्वारा मनुष्य के भावो, विचारो और भावनाओ को व्यक्त किया जाता है। वैसे भी भाषा की परिभाषा देना एक कठिन कार्य है। फिर भी भाषावैज्ञानिकों ने इसकी अनेक परिभाषा दी है। किन्तु ये परिभाषा पूर्ण नही मानी जाती है। सभी में किसी न किसी तरह की कमी पायी गयी हैँ।
भाषा की परिभाषा – Bhasha ki paribhasha
आचार्य देवनार्थ शर्मा ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार बनायी है - उच्चरित ध्वनि संकेतो की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते है उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि संकेत की प्रणाली को भाषा कहते है।
डॉ शयामसुन्दरदास के अनुसार - मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है।
डॉ बाबुराम सक्सेना के अनुसार - जिन ध्वनि-चिंहों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-बिनिमय करता है उसको समष्टि रूप से भाषा कहते है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते है-
- भाषा में ध्वनि-संकेतों का परम्परागत और रूढ़ प्रयोग होता है।
- भाषा के सार्थक ध्वनि-संकेतों से मन की बातों या विचारों का विनिमय होता है।
- भाषा के ध्वनि-संकेत किसी समाज या वर्ग के आन्तरिक और ब्राह्य कार्यों के संचालन या विचार-विनिमय में सहायक होते हैं।
- हर वर्ग या समाज के ध्वनि-संकेत अपने होते हैं, दूसरों से भित्र होते हैं।
भाषा की विशेषता
(1) भाषा ध्वनि संकेत है।
(2) भाषा यादृच्छिक है।
(3) भाषा रूढ़ है।
(1) भाषा ध्वनि संकेत है।
सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा कहते है। यह संकेत स्पष्ट होना चाहिए। मनुष्य के जटिल मनोभावों को भाषा व्यक्त करती है; किन्तु केवल संकेत भाषा नहीं है।
रेलगाड़ी का गार्ड हरी झण्डी दिखाकर यह भाव व्यक्त करता है कि गाड़ी अब खुलनेवाली है; किन्तु भाषा में इस प्रकार के संकेत का महत्त्व नहीं है। सभी संकेतों को सभी लोग ठीक-ठीक समझ भी नहीं पाते और न इनसे विचार ही सही-सही व्यक्त हो पाते हैं। सारांश यह है कि भाषा को सार्थक और स्पष्ट होना चाहिए।
(2) भाषा यादृच्छिक है।
भाषा यादृच्छिक संकेत है। यहाँ शब्द और अर्थ में कोई तर्क-संगत सम्बन्ध नहीं रहता। बकरी, गाय, भेड़, कुत्ता आदि को क्यों पुकारा जाता है, यह बताना मुश्किल है। इनकी ध्वनियों को समाज ने स्वीकार कर लिया है। इसके पीछे कोई तर्क नहीं है।
(3) भाषा रूढ़ है।
भाषा के ध्वनि-संकेत रूढ़ होते हैं। परम्परा या युगों से इनके प्रयोग होते आये हैं। औरत, मर्द, बालक, मछली, सांप, पेड़ आदि शब्दों का प्रयोग लोग अनन्तकाल से करते आ रहे है। बच्चे, जवान, बूढ़े- सभी इनका प्रयोग करते है।
क्यों करते है, इसका कोई कारण नहीं है। ये प्रयोग तर्कहीन हैं।
क्योंकि हमें बनाने वाले ने जब बनाया तो पूर्ण हीं बनाया हैँ और वो हीं बेहतर जानने वाला हैँ जिन बातो का हमें इल्म नहीं हैँ।
हर देश की अपनी एक भाषा होती है। हमारी राष्ट्र की प्रमुख भाषा हिंदी है। दुनिया में अनेक भाषाए है। जैसे- हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, गुजराती, उर्दू, तेलगु, कन्नड़, चीनी, जमर्न आदिै।
भाषा के विभिन्न रूप
भाषा एक संप्रेषण के रूप में
‘संप्रेषण’ एक व्यापक शब्द है। संप्रेषण के अनेक रूप हो सकते हैं। कुछ लोग संकेतो से अपनी बात एक-दूसरे तक पहुँचा हैं, पर संकेत भाषा नहीं हैं। भाषा भी संप्रेषण का एक रूप है।
भाषा के संप्रेषण में दो लोगों का होना जरूरी होता है- एक अपनी बात को व्यक्त करने वाला, दूसरा उसकी बात को ग्रहण करने वाला। जो भी बात इन दोनों के बीच में संप्रेषित की जाती है, उसे ‘संदेश’ कहते हैं।
भाषा में यही कार्य वक्ता और श्रोता द्वारा किया जाता है। संदेश को व्यक्त करने के लिए वक्ता किसी-न-किसी ‘कोड’ का सहारा लेता है। कोई इशारों से तो कोई ताली बजाकर अपनी बात कहता है। इस तरह इशारे करना या ताली बजाना एक प्रकार के ‘कोड’ हैं। वक्ता और श्रोता के बीच भाषा भी ‘कोड’ का कार्य करती है।
भाषा में यह ‘कोड’ दो तरह के हो सकते हैं- यदि वक्ता बोलकर अपनी बात संप्रेषित करना चाहता है तो वह उच्चरित या मौखिक भाषा (कोड) का सहारा लेना होता है और यदि लिखकर अपनी बात संप्रेषित करना चाहता है तो उसे लिखित भाषा का सहारा लेना होता है।
भाषा एक प्रतीक व्यवस्था के रूप में
यह तो ठीक है कि भाषा मनुष्य के मुख से (वागेंद्रियों से) उच्चरित होती है पर उच्चारण के अंतर्गत मनुष्य तरह-तरह की ध्वनियों (स्वर तथा व्यंजन) के मेल से बने शब्दों का उच्चारण करता है।
इन शब्दों से वाक्य बनाता है और वाक्यों के प्रयोग से वह वार्तालाप करता है। एक ओर भाषा के इन शब्दों का कोई-न-कोई अर्थ होता है दूसरी ओर ये किसी-न-किसी वस्तु की ओर संकेत करते हैं।
उदाहरण के लिए ‘थैला’ शब्द का हिंदी में एक अर्थ है, जिससे प्रत्येक हिंदी भाषा-भाषी परिचित है दूसरी ओर यह शब्द किसी वस्तु (object) यानी थैला की ओर भी संकेत करता है। यदि हम किसी से कहते हैं कि ‘एक थैला लेकर आओ’ तो वह व्यक्ति ‘थैला’ शब्द को सुनकर उसके अर्थ तक पहुँचता है और फिर ‘थैला’ को ही लेकर आता है, किसी अन्य वस्तु को नहीं।
कहने का तात्पर्य यही है कि ‘शब्द’ अपने में वस्तु नहीं होता बल्कि किसी वस्तु को अभिव्यक्त (represent) करता है। इसी बात को इस तरह से कहा जा सकता है कि शब्द तो किसी वस्तु का प्रतीक (sign) होता है।
‘प्रतीक’ जिस अर्थ तथा वस्तु की ओर संकेत करता है, वस्तुतः वह संसार में सबके लिए समान होते हैं अंतर केवल प्रतीक के स्तर पर ही होता है। ‘थैला’ शब्द (प्रतीक) का अर्थ तथा वस्तु थैला तो संसार में हर भाषा-भाषी के लिए समान है अंतर केवल ‘प्रतीक’ के स्तर पर ही है। कोई उसे ‘बुक’ (Bag) कहता है तो कोई उसे कुछ और ।
इस तरह प्रत्येक ‘प्रतीक’ की प्रकृति त्रिरेखीय् (three dimentional) होती है। एक ओर वह ‘वस्तु’ की ओर संकेत करता है तो दूसरी ओर उसके अर्थ की ओर
भाषा एक व्यवस्था के रूप में
उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भाषा एक व्यवस्था (system) है। व्यवस्था से तात्पर्य है ‘नियम व्यवस्था’ । जहाँ भी कोई व्यवस्था होती है, वहाँ कुछ नियम होते हैं।
नियम यह तय करते हैं कि क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता। भाषा के किसी भी स्तर पर (ध्वनि, शब्द, पद, पदबंध, वाक्य आदि) देखें तो सभी जगह आपको यह व्यवस्था दिखाई देगी।
कौन-कौन सी ध्वनियाँ किस अनुक्रम (combination) में मिलाकर शब्द बनाएँगी और किस अनुक्रम से बनी रचना शब्द नहीं कहलाएगी, यह बात उस भाषा की ध्वनि संरचना के नियमों पर निर्भर करती है।
उदाहरण के लिए हिंदी के निम्नलिखित अनुक्रमों पर ध्यान दीजिए-
(1) च + म + न = चमन ….(सही)
(2) क् + अ + ल् + अ + म् +अ =कलम …..(सही)
(3) म् + अ + क् + अ + ल् + अ = मकल ….(गलत)
(4) ल् + अ + क् + अ + म् + अ = लकम ….(गलत)
ऊपर के चारों अनुक्रमों में समान व्यंजन एवं स्वर ध्वनियों से शब्द बनाए गए हैं, किंतु सार्थक होने के कारण ‘चमन ‘ तथा ‘कलम’ तो हिंदी के शब्द हैं पर निरर्थक होने के कारण ‘मकल’ तथा ‘लकम’ हिंदी के शब्द नहीं हैं।
अतः ध्यान रखिए, हर भाषा में कुछ नियम होते हैं ये नियम ही उस भाषा की संरचना को संचालित या नियंत्रित करते हैं। इसलिए भाषा को ‘नियम संचालित व्यवस्था’ कहा जाता है।
भाषा के प्रकार – Bhasha ke bhed
Bhasha ke kitne roop hote Hain
भाषा के तीन रूप होते है-
(1) मौखिक भाषा
(2) लिखित भाषा
(3) सांकेतिक भाषा।
(1) मौखिक भाषा ( Maukhik bhasha )
Maukhik bhasha kise kahate Hain
किसी स्थान पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में वक्ताओं ने बोलकर अपने विचार प्रकट किए तथा श्रोताओं ने सुनकर उनका आनंद उठाया। यह भाषा का मौखिक रूप है। इसमें वक्ता बोलकर अपनी बात कहता है व श्रोता सुनकर उसकी बात समझता है।
इस प्रकार, भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति बोलकर विचार प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है, मौखिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में - जिस ध्वनि का उच्चारण करके या बोलकर हम अपनी बात दुसरो को समझाते है, उसे मौखिक भाषा कहते है।
उदाहरण:
मोबाइल , स्मार्ट वाच, भाषण, वार्तालाप, स्पीकर, रेडियो आदि।
मौखिक या उच्चरित भाषा, भाषा का बोल-चाल का रूप है। उच्चरित भाषा का इतिहास तो मनुष्य के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। मनुष्य ने जब से इस धरती पर जन्म लिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा। इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा मूलतः मौखिक है।
मौखिक भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- यह भाषा का अस्थायी रूप है।
- उच्चरित होने के साथ ही यह समाप्त हो जाती है।
- वक्ता और श्रोता एक-दूसरे के आमने-सामने हों या न हो मौखिक भाषा का प्रयोग किया जा सकता है।
- इस रूप की आधारभूत इकाई ‘ध्वनि’ है। विभिन्न ध्वनियों के संयोग से शब्द बनते हैं जिनका प्रयोग वाक्य में तथा विभिन्न वाक्यों का प्रयोग वार्तालाप में किया जाता हैं।
- यह भाषा का मूल या प्रधान रूप मना जाता हैं।
(2) लिखित भाषा ( Likhit bhasha )
Likhit bhasha kahate Hain
मकसूद विदेश में रहता है। उसने मैसेज लिखकर अपने घरवालों को अपनी रहन सहन, काम काज व वेतन की जानकारी दी। घरवालों ने मैसेज पढ़कर जानकारी प्राप्त की। यह भाषा का लिखित रूप है। इसमें एक व्यक्ति लिखकर विचार या भाव प्रकट करता है, दूसरा पढ़कर उसे समझता है।
इस प्रकार भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति अपने विचार या मन के भाव लिखकर प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति पढ़कर उसकी बात समझता है, लिखित भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिन अक्षरों या चिन्हों की सहायता से हम अपने मन के विचारो को लिखकर प्रकट करते है, उसे लिखित भाषा कहते है।
उदाहरण:
मैसेज, पत्र, लेख, पत्रिका, समाचार-पत्र, कहानी, जीवनी, संस्मरण, चैटिंग, सोशल पोस्ट, तार आदि।
इस तरह विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों ने अपनी-अपनी भाषिक ध्वनियों के लिए तरह-तरह की आकृति वाले विभिन्न लिखित-चिह्नों का निर्माण किया और इन्हीं लिखित-चिह्नों को ‘वर्ण’ (letter) कहा गया। अतः जहाँ मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि (Phone) है तो वहीं लिखित भाषा की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’ (letter) हैं।
लिखित भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- यह भाषा का स्थायी रूप है।
- इस रूप में हम अपने भावों और विचारों को लम्बे समय के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।
- यह रूप यह अपेक्षा नहीं करता कि वक्ता और श्रोता आमने-सामने हों।
- इस रूप की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’ हैं जो उच्चरित ध्वनियों को अभिव्यक्त (represent) करते हैं।
इस तरह यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि भाषा का मौखिक रूप ही प्रधान या मूल रूप है। किसी व्यक्ति को यदि लिखना-पढ़ना (लिखित भाषा रूप) नहीं आता तो भी हम यह नहीं कह सकते कि उसे वह भाषा नहीं आती।
किसी व्यक्ति को कोई भाषा आती है, इसका अर्थ है- वह उसे सुनकर समझ लेता है तथा बोलकर अपनी बात संप्रेषित कर लेता है।
(3) सांकेतिक भाषा ( Sanketik Bhasha )
Sanketik Bhasha kahate Hain
जिन संकेतो के द्वारा बच्चे या गूँगे अपनी बात दूसरों को समझाते है, वे सब सांकेतिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जब संकेतों (इशारों) द्वारा बात समझाई और समझी जाती है, तब वह सांकेतिक भाषा कहलाती है।
जैसे- चौराहे पर खड़ा यातायात नियंत्रित करता सिपाही, मूक-बधिर व्यक्तियों का वार्तालाप आदि।
इसका अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता।
भाषा के विविध रूप
हर देश में भाषा के तीन रूप मिलते है-
- बोलियाँ
- परिनिष्ठित भाषा
- राष्ट्र्भाषा
(1) बोलियाँ
जिन स्थानीय बोलियों का प्रयोग साधारण अपने समूह या घरों में करती है, उसे बोली (dialect) कहते है।
किसी भी देश में बोलियों की संख्या अनेक होती है। ये घास-पात की तरह अपने-आप जन्म लेती है और किसी क्षेत्र-विशेष में बोली जाती है। जैसे- भोजपुरी, मगही, अवधी, मराठी, तेलगु, इंग्लिश आदि।
(2) परिनिष्ठित भाषा :-
यह व्याकरण से नियन्त्रित होती है। इसका प्रयोग शिक्षा, शासन और साहित्य में होता है। बोली को जब व्याकरण से परिष्कृत किया जाता है, तब वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है।
खड़ीबोली कभी बोली थी, आज परिनिष्ठित भाषा बन गयी है, जिसका उपयोग भारत में सभी स्थानों पर होता है। जब भाषा व्यापक शक्ति ग्रहण कर लेती है, तब आगे चलकर राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर राजभाषा या राष्टभाषा का स्थान पा लेती है।
ऐसी भाषा सभी सीमाओं को लाँघकर अधिक व्यापक और विस्तृत क्षेत्र में विचार-विनिमय का साधन बनकर सारे देश की भावात्मक एकता में सहायक होती है। भारत में पन्द्रह विकसित भाषाएँ है, पर हमारे देश के राष्ट्रीय नेताओं ने हिन्दी भाषा को ‘राष्ट्रभाषा’ (राजभाषा) का गौरव प्रदान किया है।
इस प्रकार, हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा है- रूस की रूसी, फ्रांस की फ्रांसीसी, जर्मनी की जर्मन, जापान की जापानी आदि।
(3) राष्ट्र्भाषा :-
जब कोई भाषा किसी राष्ट्र के अधिकांश प्रदेशों के बहुमत द्वारा बोली व समझी जाती है, तो वह राष्टभाषा बन जाती है।
दूसरे शब्दों में- वह भाषा जो देश के अधिकतर निवासियों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है, राष्ट्रभाषा कहलाती है।
सभी देशों की अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा होती है; जैसे- अमरीका-अंग्रेजी, चीन-चीनी, जापान-जापानी, रूस-रूसी आदि।
भाषा और लिपि
लिपि -शब्द का अर्थ है-‘लीपना’ या ‘पोतना’ विचारो का लीपना अथवा लिखना ही लिपि कहलाता है।
दूसरे शब्दों में- भाषा की उच्चरित/मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए निश्चित किए गए चिह्नों या वर्णों की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।
हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी है। अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी और उर्दू भाषा की लिपि फारसी है।
मौखिक या उच्चरित भाषा को स्थायित्व प्रदान करने के लिए भाषा के लिखित रूप का विकास हुआ। प्रत्येक उच्चरित ध्वनि के लिए लिखित चिह्न या वर्ण बनाए गए। वर्णों की पूरी व्यवस्था को ही लिपि कहा जाता है। वस्तुतः लिपि उच्चरित ध्वनियों को लिखकर व्यक्त करने का एक ढंग है।
अनेक लिपियाँ :
किसी भी भाषा को एक से अधिक लिपियों में लिखा जा सकता है तो दूसरी ओर कई भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है अर्थात एक से अधिक भाषाओं को किसी एक लिपि में लिखा जा सकता है। उदाहरण के लिए हिंदी भाषा को हम देवनागरी तथा रोमन दोनों लिपियों में इस प्रकार लिख सकते हैं-
देवनागरी लिपि -क, ख, ग, घ ।
Roman lipi – K, Kh, G, Gh,
इसके विपरीत हिंदी, मराठी, नेपाली, बोडो तथा संस्कृत सभी भाषाएँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
हिंदी जिस लिपि में लिखी जाती है उसका नाम ‘देवनागरी लिपि’ है। देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपिसे हुआ है। ब्राह्मी वह प्राचीन लिपि है जिससे हिंदी की देवनागरी का ही नहीं गुजराती, बँगला, असमिया, उड़िया आदि भाषाओं की लिपियों का भी विकास हुआ है।
देवनागरी लिपि में बायीं ओर से दायीं ओर लिखा जाता है। यह एक वैज्ञानिक लिपि है।
अधिकांश भारतीय भाषाओं की लिपियाँ बायीं ओर से दायीं ओर ही लिखी जाती हैं। केवल उर्दू जो फारसी लिपि में लिखी जाती है दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती है।
नीचे की तालिका में विश्व की कुछ भाषाओं और उनकी लिपियों के नाम दिए जा रहे हैं-
क्रम | भाषा | लिपियाँ |
1 | हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, बोडो | देवनागरी |
2 | अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, इटेलियन, पोलिश, मीजो | रोमन |
3 | पंजाबी | गुरुमुखी |
4 | उर्दू, अरबी, फारसी | फारसी |
5 | रूसी, बुल्गेरियन, चेक, रोमानियन | रूसी |
6 | बँगला | बँगला |
7 | उड़िया | उड़िया |
8 | असमिया | असमिया |
अन्य भाषाए
मातृभाषा ( Matra Bhasha )
मातृभाषा- खालिद का जन्म हिंदी भाषी परिवार में हुआ है, इसलिए वह हिंदी बोलता है। शाहरुख़ का जन्म गुजराती परिवार में हुआ है, इसलिए वह गुजराती बोलता है। हिंदी व गुजराती क्रमशः उनकी मातृभाषाएँ हैं।
इस प्रकार वह भाषा जिसे बालक अपने परिवार से अपनाता व सीखता है, मातृभाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- बालक जिस परिवार में जन्म लेता है, उस परिवार के सदस्यों द्वारा बोली जाने वाली भाषा वह सबसे पहले सीखता है। यही ‘मातृभाषा’ कहलाती है।
प्रादेशिक भाषा
प्रादेशिक भाषा- जब कोई भाषा एक प्रदेश में बोली जाती है तो उसे ‘प्रादेशिक भाषा’ कहते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय भाषा
अन्तर्राष्ट्रीय भाषा- जब कोई भाषा विश्व के दो या दो से अधिक राष्ट्रों द्वारा बोली जाती है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय भाषा बन जाती है। जैसे- अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है।
राजभाषा
राजभाषा- वह भाषा जो देश के कार्यालयों व राज-काज में प्रयोग की जाती है, राजभाषा कहलाती है।
जैसे- भारत की राजभाषा अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों हैं। अमरीका की राजभाषा अंग्रेजी है।
मानक भाषा
मानक भाषा-विद्वानों व शिक्षाविदों द्वारा भाषा में एकरूपता लाने के लिए भाषा के जिस रूप को मान्यता दी जाती है, वह मानक भाषा कहलाती है।
भाषा में एक ही वर्ण या शब्द के एक से अधिक रूप प्रचलित हो सकते हैं। ऐसे में उनके किसी एक रूप को विद्वानों द्वारा मान्यता दे दी जाती है; जैसे-
गयी – गई (मानक रूप)
ठण्ड – ठंड (मानक रूप)
अन्त – अंत (मानक रूप)
रव – ख (मानक रूप)
शुद्ध – शुदध (मानक रूप)
Download pdf ( Bhasha )
अगर आप हिंदी व्याकरण सीखना चाहते हो और आप भाषा के अध्याय को पीडीऍफ़ फॉर्मेट में डाउनलोड करना चाहते हो तो निचे डाउनलोड बटन पर क्लिक करे।
Final words as Conclusion – निष्कर्ष
किसी भी चीज का मजबूत होना उसकी नींव पर निर्भर करता हैँ ठीक उसी प्रकार अगर आप हिंदी भाषा को मज़बूत करना चाहते हो तो आपको इसके नियम पढ़ने होंगे और वो नियम हमें हिंदी व्याकरण के रूप में प्राप्त होते हैँ। हिंदी व्याकरण में कई प्रमुख विषय आते हैँ जिनमे एक हैँ भाषा ( Bhasha ) जिसका अध्ययन करना बहुत जरूरी होता हैँ।
HINDI VYAKARAN – हिन्दी व्याकरण
Bhasha – भाषा | Varnamala |
Sarvanam | Kriya – क्रिया |
Visheshan | Samas – समास |
Paryayvachi shabd | Vilom shabd |
Karak – कारक | Nibandh – निबंध |
Hindi Vyakaran | Article writing |
FAQ – Bhasha kise Kahate Hain
ज़ब मनुष्य का बोलकर, लिखकर, सुनकर व पढ़कर, अपने मन के विचारों तथा भावों का आदान-प्रदान करना भाषा कहलाता है।
दूसरे शब्दों में – जिस साधन या विधि के द्वारा हम अपने विचारों को लिखित तथा कथित रूप से अन्य लोगों को समझा सके और अन्य लोगों के विचारों तथा भावों को समझ सके, उस साधन को भाषा कहा जाता है।
अपने मन के भाव को अन्य लोगो तक पहुंचाने का साधन भाषा कहलाती है।
भाषा के मुख्यतः 3 प्रकार है –
1. कथित भाषा
2. लिखित भाषा
3. सांकेतिक भाषा
पत्र, लेख, पत्रिका, समाचार-पत्र, कहानी, जीवनी, संस्मरण, तार आदि, भाषा के लिखित उदाहरण है।
1. कथित भाषा
2. लिखित भाषा
3. सांकेतिक भाषा
भाषा के पाँच अंग होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं…
वर्ण
शब्द
लिपि
ध्वनि
वाक्य
देवनागरी लिपि
व्याकरण के मुख्यतः तीन भेद होते है|
1. वर्ण – विचार
2. शब्द – विचार
3. वाक्य – विचार
वह भाषा है, जिसमें मनुष्य अपने मन के भावों-विचारों को मुँह के द्वारा बोलकर व्यक्त करता है. जो कुछ भी बात मुँह के द्वारा बोला जाता है, उसे मौखिक भाषा कहते हैं.
जब मनुष्य अपने मन के भावों को मुँह से न बोलकर लिखकर व्यक्त करता है तो उसके द्वारा लिखे गए उन सब विचारों को ‘लिखित भाषा कहा जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो जब हम अपने विचारो को बोलने की जगह लिखकर दूसरों के समक्ष व्यक्त करते है तो उसे लिखित भाषा कहा जाता है।